एक संन्यासी से मुख्यमंत्री तक: योगी आदित्यनाथ की प्रेरणादायक कहानी
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भारतीय राजनीति की भागदौड़ में, जहाँ हर दिन नया मोड़ लाता है, एक नाम हमेशा दृढ़ता, अनुशासन और निर्भीक नेतृत्व का प्रतीक बन चुका है — योगी आदित्यनाथ। भगवा वस्त्र पहनने वाला यह संन्यासी जब सत्ता के मंच पर आया, तो न सिर्फ एक राज्य का नेतृत्व किया बल्कि यह भी साबित कर दिया कि सेवा और संकल्प की राह पर चलने वाला व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है।
शुरुआत पहाड़ों से
5 जून 1972 को उत्तराखंड के पंचूर गांव में जन्मे अजय मोहन सिंह बिष्ट, एक सामान्य मगर संस्कारी परिवार में पले-बढ़े। उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट वन विभाग में रेंजर थे, और घर का माहौल अनुशासन से भरा हुआ था।
अजय पढ़ाई में अच्छे थे। उन्होंने गणित में स्नातक की पढ़ाई हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से पूरी की। एक अच्छा करियर उनका इंतज़ार कर रहा था... लेकिन किस्मत उन्हें एक अलग दिशा में ले जाना चाहती थी।
साधु का रास्ता: योगी आदित्यनाथ की शुरुआत
90 के दशक की शुरुआत में, अजय अपने घर-परिवार को छोड़कर आध्यात्मिक मार्ग की ओर चल पड़े। उनका सफर उन्हें गोरखपुर ले आया, जहाँ उनकी मुलाकात हुई महंत अवैद्यनाथ से — गोरखनाथ मठ के प्रमुख संत और एक प्रभावशाली हिंदू नेता।
अजय ने उन्हें अपना गुरु मान लिया और Nath संप्रदाय में दीक्षा ली। यहीं उनका नया नाम पड़ा — योगी आदित्यनाथ। 2014 में महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद, योगी जी को गोरखनाथ मठ का महंत बनाया गया। इस भूमिका ने उन्हें आध्यात्मिक के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी बेहद प्रभावशाली बना दिया।
सबसे युवा सांसद: राजनीति में प्रवेश
सिर्फ 26 साल की उम्र में, योगी आदित्यनाथ ने 1998 में गोरखपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीत लिया — और वे उस समय के सबसे युवा सांसद बने। इसके बाद वे लगातार पाँच बार सांसद बने।
उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नामक एक संगठन की स्थापना की, जो युवाओं को जोड़ने और सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर कार्य करने के लिए बना। उनके विचारों पर कई बार विवाद हुआ, लेकिन लाखों लोगों के लिए वे प्रेरणा बनते चले गए।
मुख्यमंत्री बनना: एक संत, एक प्रशासक
2017 में जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को ऐतिहासिक जीत मिली, तो सब हैरान रह गए — मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया योगी आदित्यनाथ को।
लोगों को शक था कि एक संत प्रशासन कैसे संभालेगा। लेकिन योगी ने सबको चौंका दिया। उन्होंने कानून व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाने की नीति ने उन्हें "बुलडोजर बाबा" की उपाधि दिला दी।
उनके नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण पहल हुईं:
बुनियादी ढांचे का विकास — एक्सप्रेसवे, एयरपोर्ट, सड़कें।
औद्योगिक निवेश — यूपी में बड़े-बड़े निवेशकों का आना शुरू हुआ।
स्वास्थ्य और स्वच्छता — बीमारियों और गंदगी के खिलाफ अभियान।
धार्मिक पर्यटन — अयोध्या, काशी जैसे शहरों का कायाकल्प।
और फिर 2022 में उन्होंने इतिहास रच दिया — उत्तर प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने लगातार दो बार कार्यकाल पूरा किया और दोबारा चुने गए।
व्यक्तिगत जीवन: एक साधक, एक नेता
राजनीति में इतने ऊंचे पद पर होते हुए भी, योगी आदित्यनाथ आज भी एक संन्यासी के अनुशासन में जीते हैं। ब्रह्मचारी जीवन, सादा खाना, सुबह जल्दी उठकर पूजा-पाठ और संयमित दिनचर्या — ये उनकी पहचान हैं।
उनके पास व्यक्तिगत परिवार नहीं है। उनका कहना है, "मेरा परिवार पूरा भारत है।"
योगी आदित्यनाथ से क्या सीख सकते हैं?
उनकी कहानी सिर्फ राजनीति की नहीं है, बल्कि यह है:
दृढ़ संकल्प की — वे कभी अपने रास्ते से नहीं डिगे।
अनुशासन की — साधु का जीवन प्रशासन में भी दिखता है।
विनम्रता के साथ शक्ति की — सादगी में भी नेतृत्व छिपा है।
सेवा की भावना — न कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, सिर्फ देश सेवा।
अंत में...
उत्तराखंड के एक छोटे गांव से लेकर उत्तर प्रदेश की सत्ता तक, योगी आदित्यनाथ की कहानी एक अद्भुत सफर है। चाहे आप उनके विचारों से सहमत हों या नहीं, उनकी यात्रा प्रेरणा देने वाली है।
वह हमें याद दिलाते हैं कि सच्चे संकल्प और सेवा भाव से कोई भी ऊँचाई हासिल की जा सकती है — भले ही आप एक संन्यासी हों, या एक सामान्य युवक।
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