पहलगाम में आतंक की आंधी में इंसानियत की मिसाल बना कश्मीरियत
जब गोलियों की गूंज गूंजी, तब कश्मीर की वादियों से इंसानियत की आवाज़ उठी।
एक आम दिन, जो अचानक बदल गया
पहलगाम की खूबसूरत सुबह, जो आम दिनों की तरह शांत और दिलकश थी, अचानक एक आतंकी हमले की वजह से खौफ में बदल गई। गोलियों की आवाज़, अफरातफरी और चीखें—कुछ पल के लिए सब कुछ थम गया। स्थानीय लोग और सैलानी दोनों ही डर के साए में आ गए।
लेकिन जैसे ही यह खबर फैली, कश्मीरियत की असली तस्वीर सामने आई—एक ऐसा जज्बा, जिसमें इंसानियत सबसे ऊपर है।
असली हीरो: वो कश्मीरी जिन्होंने डर को नहीं, इंसानियत को चुना
जहां एक ओर आतंकियों ने दहशत फैलाने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर स्थानीय कश्मीरी लोगों ने सैलानियों की मदद के लिए दिल खोल दिए। दुकानदार, टैक्सी ड्राइवर, होटल कर्मचारी, और आम ग्रामीण—हर कोई बिना डरे आगे आया।
एक होटल मालिक श्री अल्ताफ ने 20 से ज्यादा पर्यटकों को अपने होटल के तहखाने में सुरक्षित रखा। उन्होंने कहा, "मेहमान हमारे लिए खुदा के रूप हैं। कश्मीरियत का यही असली मतलब है।"
मदद, दवा और दिलासा
घायल लोगों को स्थानीय डॉक्टरों और युवाओं ने इंसानी चैन बना कर अस्पताल पहुंचाया। किसी ने पानी दिया, किसी ने फोन कराया, किसी ने सिर्फ ये कहा—"घबराइए मत, आप अकेले नहीं हैं।"
आतंक के खिलाफ कश्मीरियों की आवाज़
अगले ही दिन, स्थानीय लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ ज़ोरदार और शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। उन्होंने हाथों में तख्तियां लीं:
- आतंकवादियों से हमारा कोई लेना-देना नहीं
- हमारे पर्यटक हमारे परिवार हैं
- कश्मीरियत ज़िंदा है, ज़िंदा रहेगी
लोगों ने तिरंगा फहराया, नारे लगाए और दुनिया को दिखाया कि कश्मीर का दिल आतंक से बड़ा है।
देशभर में गूंजा कश्मीर का पैगाम
सोशल मीडिया पर कश्मीरी लोगों की मदद के वीडियो और फोटो वायरल हो गए। हैशटैग #KashmiriyatZindabad और #InsaniyatKiJeet ट्रेंड करने लगे। देशभर से लोगों ने कश्मीरियों के इस साहस और करुणा की तारीफ की।
निष्कर्ष: आतंक हार गया, इंसानियत जीत गई
आतंक का मकसद होता है डर फैलाना और समाज को तोड़ना। लेकिन पहलगाम में हुआ ठीक इसका उल्टा। लोगों ने मिलकर दिखा दिया कि कश्मीर नफरत की नहीं, मोहब्बत की ज़मीन है।
जब आतंक की आंधी आई, तब इंसानियत की लौ और भी तेज़ जल उठी। यही है असली कश्मीरियत—जिसे कोई भी बंदूक झु

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें