क्या मुसलमानों की बहुसंख्या के आधार पर पाकिस्तान को कश्मीर मिलना चाहिए?”

 



“क्या मुसलमानों की बहुसंख्या के आधार पर पाकिस्तान को कश्मीर मिलना चाहिए?”


क्या धर्म के आधार पर देश बांटने की सोच आज भी तर्कसंगत है? गांधी, नेहरू, आज़ाद और जिन्ना की सोच, 1947 का विभाजन, और आज के भारत में मुसलमानों की भूमिका को समझने की एक मानवीय और तार्किक कोशिश।


"धर्म के नाम पर बँटवारा – क्या आज भी यही तर्क चलेगा?"

1947 का साल सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर एक गहरा घाव है। जब देश आज़ाद हुआ, तो इसके साथ ही बँटवारा भी हुआ — और उसके पीछे जो सोच थी, वो ये थी कि मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र होना चाहिए: पाकिस्तान। लेकिन क्या यह तर्क, कि जहां मुस्लिम बहुसंख्या हो, वह पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए — आज भी मान्य है?

1. गांधी, नेहरू और आज़ाद: जिन्ना को क्यों नहीं समझा पाए?

गांधीजी मानते थे कि भारत सबका है — हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी का। वे कहते थे, "मजहब इंसान का निजी मामला है, राष्ट्र का नहीं।"
नेहरू आधुनिक भारत के स्वप्नदृष्टा थे — जो धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र और समानता के आधार पर राष्ट्र बनाना चाहते थे।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद तो खुद मुसलमान होकर भी पाकिस्तान के सिद्धांत के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि भारत में मुसलमानों को बहुसंख्या नहीं, समान अधिकार और स्वतंत्रता चाहिए।

लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना की राजनीति अलग थी। उन्होंने 'दो राष्ट्र सिद्धांत' को अपनाया, और इस आधार पर पाकिस्तान की मांग रखी। जिन्ना के मन में डर था कि स्वतंत्र भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक हो जाएंगे और उनके अधिकारों का हनन होगा।

गांधी, नेहरू और आज़ाद ने पूरी कोशिश की उन्हें समझाने की, लेकिन अंत में ब्रिटिश सरकार, सत्ता की भूख और अविश्वास की दीवारें इतनी ऊंची हो चुकी थीं कि विभाजन रोकना असंभव हो गया।

2. कश्मीर और पाकिस्तान की सोच: सिर्फ मुस्लिम बहुसंख्या से क्या हक बनता है?

पाकिस्तान बार-बार कहता है कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, इसलिए उसे पाकिस्तान में होना चाहिए। लेकिन क्या ऐसा तर्क आज की दुनिया में चल सकता है?

अगर ऐसा ही है, तो भारत में आज भी पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान रहते हैं — 20 करोड़ से अधिक। क्या इसका मतलब ये है कि ये सभी लोग पाकिस्तान के हैं? बिलकुल नहीं। ये सभी भारतीय हैं — गर्व से, सम्मान से।

3. भारतीय मुसलमान: क्या वो भारत छोड़ना चाहेंगे?

भारत का मुसलमान एक डॉक्टर है, एक सैनिक है, एक शिक्षक है, एक व्यापारी है, एक कलाकार है — और सबसे पहले एक भारतीय है।
क्या कोई भी समझदार इंसान उस देश को छोड़ेगा, जहां उसे बोलने, सोचने, पूजा करने और तरक्की करने की पूरी आज़ादी है?

भारतीय मुसलमान पाकिस्तान की तानाशाही और कट्टरता को देख चुके हैं। वहां न तो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा है, न महिलाओं को आज़ादी, न ही लोकतंत्र मजबूत है। भारत में मुसलमानों को लोकतंत्र मिला है, संविधान का संरक्षण मिला है, और सबसे बढ़कर एक साझा संस्कृति मिली है जो हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सबको जोड़ती है।

4. असली सवाल: हम कब तक धर्म के नाम पर राजनीति करते रहेंगे?

आज का भारत 140 करोड़ लोगों का लोकतंत्र है। हमें भारत को हिन्दू या मुस्लिम राष्ट्र नहीं, बल्कि एक समावेशी राष्ट्र बनाना है — जहां नागरिकता धर्म से नहीं, जिम्मेदारी और संवैधानिक अधिकारों से तय होती है।

कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है — न सिर्फ कानूनी रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी। वहां के लोगों ने आतंक के साये में भी भारत का साथ दिया है, और आज़ादी का असली अर्थ समझा है।

निष्कर्ष:

धर्म के नाम पर बँटवारे का समय गया। अब समय है विकास, भाईचारे और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का। जो देश मुसलमानों के नाम पर बना, वो आज खुद कट्टरता से जूझ रहा है। और जो देश सबको साथ लेकर चला — भारत — वो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत बन चुका है।

भारत के मुसलमानों को न कोई पाकिस्तान ले जा सकता है, न वो जाना चाहते हैं। उन्हें सिर्फ एक पहचान चाहिए — भारतीय।



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